Sunday, 23 June 2013

Dedicated to Kashmir...



थम गए है लब्ज़ मेरे,
अब किसी मंजर की तलाश नहीं.
ऐसी होती है जन्नत ......
हमें अपने आखों पर विश्वास नहीं …. 

पलके भीगी थी उसकी (Palke bhigi thi uski)



पलके भीगी थी उसकी,
रोतो हम भी रहे थे.
यादों में खो चुके थे लब्ज़ भी नम थे
सवालों पे सवाल पूछती थी आखे उसकी
फकत जवाब देने.. ये लमहे भी कम थे. ….

Palke bhigi thi uski,
Roto ham bhi rhe the.
Yadon me khochuke the labz bhi nam the
Sawalon pe sawal puchti thi akhen uski,
Fakat jawab dene... Ye lamhe bhi kam the.

कामियाबी (Kamiyabi)

चूमती है कामियाबी कदम उसीके,
जिसकी मुस्कुराहट शुरू होती है
मिस्किनोकी खुशीसे...

Chumti hai kamiyabi kadam usike
jiski muskurahat shuru hoti hai
miskinoki khushi se....

Wednesday, 22 May 2013

किसीको इतना करीब मतकरो के (Kisi ko itna karib mat karo)

किसीको इतना करीब मतकरो के
दूर जानेमे तकलीफ हो,
और किसीसे इतने दूर मत जाओ के
पास अनेमे तकलीफ हो...
फासले ऐसे रखो बरक़रार के ना उने तकलीफ हो न हमें तकलीफ हो….

 
Kisi ko itna karib mat karo ke duur jane me taklif ho,
or kisise itne duur mat jaao ke paas ane me taklif ho.
fasle aise rakho barkarar ke na une taklif ho na hame taklif ho...
 

बहोत शिकायते है अपने आपसे



बहोत शिकायते है अपने आपसे और
किसीपर इससे ज्यादा हक भी तो नहीं ...
पता नही क्यों खफा रहते है हम अपने आपसे ही,
लगता है ये जहा अपना नहि… 

लब्ज़ खामोश आखोंमे नमी है


लब्ज़ खामोश आखोंमे नमी है,
सिवाए पलकों की आहट के कुछ तो कमी है.
थोडीसी हसी अपने रुखसार पर फेरदो,
चेहरेपे सिर्फ उसीकी कमी है.

कैसे समजाऊ के ये दौलत मांगते है



ए खुदा कैसे समजाऊ के ये दौलत मांगते है,
आधा पेट खानेकी फुरसत नहीं ऐसी शोहरत मांगते है.
इने नहीं दिखती हर वो चीज जो बिनामांगे मिलती है
शुक्र अदा करने के अलावा  फकत  ये आराम मांगते है